सच बोलूं तो कुछ खास चल नहीं रही है जिंदगी अब
हर कमरे में एक मायूसी कोने में बेथी रहती है
देखती रहती है मुझे एक टक निगाह लगा कर
मानो कहती हो कि चुप तो हूं मैं पर मुझे भूल ना जाना
दूसरे कोने में डर भी आँखें फीके घूरता रहता है
जिसे देख के यूं लगता है कि अभी कूद के कुछ नोच देगा
जेसे ही उसको एक हद से ज्यादा ख़ुशी होने का पता चल जाये
खुशी बीच में बैठी होती है खुद कुछ सेहमी हुई सी
पर उसके ज़्यादा पास जाने की हिम्मत नहीं हो पाती है अब
सच बोलूं तो कुछ खास चल नहीं रही है जिंदगी अब
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